क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी
बकरीद 12 अगस्त को
एसकेजी डेस्क
देहरादून। मीठी ईद के दो महीने बाद बकरीद का त्योहार आ गया है। इस्लाम में यह त्योहार बकरे की कुर्बानी देकर मनाया जाता। आखिर इस त्योहार में बकरे की कुर्बानी देने का क्या महत्व है?
बकरीद में बकरे की कुर्बानी दी जाती है लेकिन कम लोगों को ही यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है लेकिन यह रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है।
दरअसल बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। यह कहानी अलैय सलाम नाम के एक आदमी की हैं। अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा।
सलाम ने अल्लाह की बात मानकर इब्राहीम अलैय सलाम छुरी लेकर अपने बेटे को कुर्बान करने लगे। तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया।
इस तरह सलाम के हाथों मेमने के जिबह होने के साथ पहली कुर्बानी हुई अल्लाह इस कुर्बानी से राजी हो गए. तभी से बकरीद मनाई जाने लगी।
खास बात यह है कि कुर्बानी के लिए किसी भी बकरे का इस्तेमाल नहीं किया जाता। कुर्बान किया जाने वाले बकरे को कोई बीमारी ना हो। उसकी आंखें, सींघ या कान बिल्कुल ठीक हो, वह दुबला-पतला ना हो. यही नहीं, बकरा बहुत छोटी उम्र का हो तो भी उसकी बलि नहीं दी जा सकती। दो या चार दांत आने के बाद ही उसकी कुर्बानी दी जाती है।